By Healthy Nuskhe | Apr 28, 2020
महिलाओं के जीवन की सबसे तकलीफदेह और चिंताजनक अवस्था गर्भावस्था का समय होता है। गर्भाकाल तकलीफों का अनुभव कराता है। गर्भवती महिलाओं के लिए गर्भावस्था में सावधानी बरतना बहुत ही आवश्यक होता है क्योंकि इस अवस्था में दो जान की परवाह होती है। गर्भकाल में बीमारियों का प्रकोप अपनी चरम पर होता है। इस समय छोटी मोटी परेशानियों को नजर अंदाज करने से गंभीर परिणाम भी भुगतना पड़ सकता है। गर्भकाल का मूल मंत्र सुरक्षा और पौष्टिक आहार का सेवन करना होता है। गर्भवती महिलाओं का गर्भ का तीसरा महीना शुरू होने के बाद जब उनका नार्मल ब्लड प्रेशर अचानक से बढ़ना शुरू हो जाए और सर में दर्द बना रहे तो उन्हे इसे बिल्कुल भी इग्नोर(अनदेखा) नहीं करना चाहिए ।
प्रिएक्लेम्पसिया एक तरह की बीमारी है जिसमें गर्भनाल से शिशु को जाने वाले रक्त प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है और इसके कारण ही गर्भस्थ शिशु को ऑक्सीजन मिलने में कठिनाई उत्पन्न होती है। इसके साथ ही मां द्वारा मिलने वाले पोषक तत्व भी शिशु को मिलना बंद हो जाता है। परिणाम स्वरूप इस बीमारी से शिशुओं के विकास में बाधा व कठिनाई आती है।
प्रीक्लेम्पसिया के लक्षण क्या होते हैं?
1 ब्लड प्रेशर का बढ़ना अचानक से
2 अचानक बहुत तेज सिर दर्द होना
3 अचानक हाथ पैरों में सूजन आना
4 पेट का अनियमित दर्द होना
5 उल्टी होना और जी खबराना
6 शारीरिक वजन का तेजी से बढ़ना।
प्रीक्लेम्पसिया होने का कारण:- गर्भवती महिलाएं अगर निम्न परिस्थितियों से गुजरती है तब प्रिक्लेम्पसिया होनी की संभावना होती है-
1 गर्भवती होने से पहले किडनी से रोग से पीड़ित हो।
2 गर्भवती होने से पहले ब्लड प्रेशर सामान्य से अधिक रहने की प्रवृत्ति हो।
3 गर्भ में एक से अधिक शिशु हो।
4 यदि गर्भवती महिला की आयु 20 वर्ष से कम या 40 वर्ष से अधिक की हो।
5 गर्भवती पहले से ही ओवरवेट रही हो।
6 गर्भवती के दूसरे प्रसव में पहले प्रसव के बाद 10 वर्ष या अधिक का अंतर रहा हो।
7 माँ को रोग-प्रतिरोधक क्षमता संबंधी कोई रोग हो।
8 मधुमेह संबंधी परेशानी हो।
9 गर्भवती के परिवार में उनकी माँ या बहन को यह बीमारी रही हो।
10 कुछ गर्भवती महिलाओं में तो प्रिक्लेम्पसिया के लक्षण प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देते हैं लेकिन यदि डॉक्टर की जांच में यूरिया की बढ़ी हुई मात्रा और हाई ब्लड-प्रेशर का पता चलता है तो इसे प्रिक्लेम्पसिया का लक्षण माना जाता है और प्रिक्लेम्पसिया से पीड़ित महिला के रक्त के प्लेटलेट्स की संख्या भी कम हो जाती है।
कुछ महत्वपूर्ण बातें
1. विश्व में लगभग 10 प्रतिशत स्त्रियों को गर्भावस्था में हाई ब्लड प्रेशर का सामना करना पड़ता है। लेकिन इनमें से बस तीन से पांच प्रतिशत (3-5%) मामले ही प्रीक्लेम्पसिया के होते हैं। तो गर्भावस्था के दौरान ब्लडप्रेशर बढऩे के कारण सभी स्त्रियों को ऐसी नहीं समस्या होती है।
2. गर्भवती स्त्री पर प्रीक्लेम्पसिया के कारण किडनी और लिवर पर इसका बुरा असर पड़ता है । शिशु के विकास में भी रुकावट आती है और प्री-मैच्योर डिलीवरी की समस्या होने का डाउट रहता है ।
प्रीक्लेम्पसिया के स्टेज
माइल्ड प्रीक्लेम्पसिया
इसमें गर्भवती महिलाओं का सिस्टोलिक ब्लडप्रेशर 140 या उससे अधिक होता है और डायस्टोलिक ब्लडप्रेशर 90 या उससे अधिक होता है, इसे माइल्ड प्रिक्लेम्पसिया के नाम से जाना जाता है।
इंटेंस प्रीक्लेम्पसिया
इसमें अगर गर्भवती स्त्री का सिस्टोलिक ब्लडप्रेशर 160 या उससे अधिक होता है और डायस्टोलिक ब्लडप्रेशर 110 या इससे अधिक होता है तो इसे इंटेंस प्रिक्लेम्पसिया के नाम से जाना जाता है।
प्रीक्लेम्पसिया के समस्या से बचाव के लिए इन बातों का ध्यान रखें-
1. शादी के बाद पारिवारिक जीवन में पहले से ही नियमित व्यायाम और संतुलित खानपान को अपनाना चाहिए और ओबेसिटी से बचना चाहिए।
2. अगर महिलाएं को पहले से ही डायबिटीज़, हाई ब्लडप्रेशर और माइग्रेन हो तो दवाओं द्वारा ऐसी समस्याओं को नियंत्रित करना चाहिए।
3. गर्भावस्था के शुरुआत से ही नियमित रूप से ब्लडप्रेशर की जांच ज़रूरी है।
4. गर्भावस्था के 20 सप्ताह बीत जाने के बाद यूरिन की जांच ज़रूर करवानी चाहिए।
5. लक्षणों की पुष्टि होने के बाद अल्ट्रासाउंड द्वारा गर्भस्थ में शिशु के विकास की भी जांच करवानी चाहिए।
प्रीक्लेम्पसिया का उपचार कैसे किया जाए
गर्भवती महिलाओं को सीमित मात्रा में नमक का सेवन करने के साथ आराम करना चाहिए। दवाओं की मदद से बढ़ते ब्लडप्रेशर को नियंत्रित करना चाहिए। समस्या होने पर डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए और डिलीवरी सुरक्षित तरीके से डॉक्टर की निगरानी में और सलाह पर करवानी चाहिए।