हर साल आज के दिन यानी की 8 मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे मनाया जाता है। बता दें कि बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाले आनुवांशिक रक्त रोग को थैलेसीमिया कहते हैं। वहीं बच्चे में इस रोग की पहचान 3 महीने बाद हो पाती है। हर साल 8 मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे मनाने के पीछे का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों को रक्त संबंधित इस गंभीर बीमारी के प्रति जागरूक करना है। इस बीमारी की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि माता-पिता से अनुवांशिकता के तौर पर मिलने वाली इस बीमारी के कारणों का पता लगाकर भी इससे बचा नहीं जा सकता।
इस बार वर्ल्ड थैलेसीमिया डे 2023 की थीम है- 'जागरूक रहें। शेयर करना। देखभाल: थैलेसीमिया केयर गैप को पाटने के लिए शिक्षा को मजबूत करना।' जब हंसने-खेलने की उम्र में बच्चों को इस गंभीर बीमारी के कारण अस्पताल के ब्लड बैंक के चक्कर काटने पड़ते हैं, तो जरा सोचिए कि उस मासूम और उनके माता-पिता व परिजनों का क्या हाल होता होगा। थैलेसीमिया रोग होने पर बच्चों का लगातार बीमार रहना, सूखता चेहरा, वजन ना बढ़ना आदि के कई लक्षण देखने को मिलते हैं। आइए जानते हैं विश्व थैलेसीमिया दिवस पर इस बीमारी के लक्षण और बचाव के बारे में...
जानिए क्या है थैलेसीमिया
बच्चों में जन्म से ही यह रोग मौजूद रहता है। लेकिन 3 महीने बाद इस रोग की पहचान हो पाती है। एक्सपर्ट्स के अनुसार इस बीमारी के दौरान बच्चे के शरीर में भारी मात्रा में खून की कमी होने लगती है। जिसके कारण बच्चे के शरीर को बाहरी खून की आवश्यकता होती है। खून की कमी होने से बच्चे के शरीर में हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है और बार-बार खून चढ़ाने की वजह से मरीज के शरीर में अतिरिक्त लौह तत्व जमा होने लगता है। यह हृदय में पहुंच कर जानलेवा साबित होता है।
थैलेसीमिया के लक्षण
शरीर में पीलापन बना रहना व दांत बाहर की ओर निकल आना
आयु के अनुसार शारीरिक विकास न होना
कमजोरी और उदासी रहना
सांस लेने में तकलीफ होना
बार-बार बीमार होना
सर्दी-जुकाम बना रहना
कई तरह के संक्रमण होना
थैलेसीमिया से बचाव
मरीज का हीमोग्लोबिन 11-12 बनाए रखने का प्रयास करें
शादी से पहले महिला-पुरुष की ब्लड की जांच कराएं
समय पर दवाइयां लें और इलाज पूरा लें।
प्रेग्नेंसी के दौरान इसकी जांच कराएं
थैलेसीमिया एक प्रकार का रक्त होता है। बता दें कि यह दो प्रकार का होता है। जब जन्म लेने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थैलेसीमिया होता है। इस कंडीशन में बच्चे में मेजर थैलेसीमिया हो सकता है। यह मरीज के लिए काफी घातक हो सकता है। वहीं माता-पिता में से किसी एक में माइनर थैलेसीमिया होने पर बच्चे को किसी तरह का खतरा नहीं होता। इसलिए जरूरी है कि शादी होने से पहले महिला-पुरुष अपनी जांच करवा लें।
थैलेसीमिया के कुछ अहम तथ्य
थैलेसीमिया से पीड़ित मरीजों के इलाज में काफी खून और दवाइयों की जरूरत होती है। जिसके कारण सभी मरीज अपना इलाज नहीं करवा पाते हैं। इस गंभीर बीमारी से 12 से 15 साल की उम्र में बच्चे की मौत हो जाती है। वहीं सही इलाज मिलने पर 25 वर्ष व इससे अधिक जीने की संभावना होती है। हालांकि जैसे-जैसे रोगी की उम्र बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे ही उसे खून की जरूरत भी बढ़ती जाती है। इसलिए समय पर इस बीमारी की पहचान होना बहुत जरूरी होता है।
इस बीमारी के इलाज के लिए अस्थि मंजा ट्रांसप्लांटेशन (एक किस्म का ऑपरेशन) काफी हद तक फायदेमंद होता है। हालांकि इस ट्रांसप्लांटेशन में खर्च काफी ज्यादा होता है। बता दें कि देश भर में थैलेसीमिया, सिकलथेल, सिकल सेल और हिमोफेलिया आदि से पीड़ित अधिकतर गरीब बच्चे 8-10 साल से ज्यादा नहीं जी पाते हैं।